भूख, जाल और आज़ादी (Bhukh, Jaal Aur Azaadi)

भूख की तड़प कब किसी को मौत के जाल में फंसा दे, कहा नहीं जा सकता। आसमान में उड़ते कबूतरों का एक झुंड भी इसी भूल का शिकार हो गया। लेकिन क्या वे शिकारी के जाल से निकल पाए?


बहुत पुरानी बात है। कबूतरों का एक झुंड एक घने जंगल में रहता था। वे हर रोज़ दाना-पानी की तलाश में उड़ान भरते थे, लेकिन इस बार हालात बदले हुए थे। इलाके में भयानक अकाल पड़ चुका था। चारों तरफ सिर्फ सूखी ज़मीन और मुरझाए पेड़ दिख रहे थे। खाने को कुछ भी नहीं बचा था। झुंड के मुखिया चित्रगुप्त ने देखा कि सभी कबूतर भूख से कमजोर हो रहे हैं। उन्हें जल्द ही कहीं और उड़ना होगा।

भूख, जाल और आज़ादी (Bhukh, Jaal Aur Azaadi)


चित्रगुप्त ने झुंड को दूसरी जगह उड़ान भरने का आदेश दिया और सबसे तेज़ उड़ने वाले जवान कबूतर को ज़मीन पर नज़र रखने को कहा। वह कबूतर सबसे नीचे उड़ते हुए ध्यान से देख रहा था कि कहां कुछ खाने को मिल सकता है। अचानक उसने देखा—नीचे ज़मीन पर अनाज के दाने बिखरे हुए हैं! उसकी आँखें चमक उठीं। उसने झट से यह खबर चित्रगुप्त को दी।

भूख से परेशान कबूतरों की हालत को देखते हुए चित्रगुप्त ने झुंड को नीचे उतरने का इशारा किया। जैसे ही वे नीचे उतरे, दाने चुगने लगे। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि यह दाने शिकारी ने बिछाए थे और ऊपर एक जाल तना हुआ था। जैसे ही कबूतरों ने दाने खाना शुरू किया, शिकारी ने जाल खींच लिया—अब पूरा झुंड जाल में फंस चुका था!

कबूतरों की आखिरी उम्मीद

कबूतरों में हलचल मच गई। कोई चीखने लगा, कोई रोने लगा—"अब तो हम मारे गए!" लेकिन चित्रगुप्त शांत था। उसने कहा, "डरो मत। हम सब अगर मिलकर कोई रास्ता निकालें, तो बच सकते हैं।"

"लेकिन कैसे?" एक कबूतर ने घबराकर पूछा।

चित्रगुप्त बोला, "जाल बहुत मजबूत है, हम इसे काट नहीं सकते। लेकिन एकता में बड़ी ताकत होती है। अगर हम सब एक साथ उड़ें, तो इस जाल को भी उठा सकते हैं!"

सबने सहमति में सिर हिलाया। चित्रगुप्त ने आदेश दिया—"अपनी चोंच से जाल पकड़ो और जैसे ही मैं 'फुर्र' कहूं, पूरी ताकत से उड़ जाना!"

शिकारी तेजी से उनकी ओर बढ़ रहा था। लेकिन उससे पहले ही चित्रगुप्त ने ज़ोर से कहा—"फुर्र!"

आज़ादी की ओर उड़ान

सभी कबूतरों ने एक साथ ज़ोर लगाया और उड़ान भरी। देखते ही देखते पूरा जाल हवा में उठ गया! शिकारी दंग रह गया। उसने भागकर जाल पकड़ने की कोशिश की, लेकिन कबूतर बहुत ऊपर जा चुके थे। शिकारी बस उन्हें देखता रह गया।

लेकिन मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं। कबूतर अब भी जाल में थे और अगर वे ज्यादा देर तक उड़ते, तो थककर नीचे गिर सकते थे। तभी चित्रगुप्त को याद आया—उसका एक मित्र हिरण्यक नाम का चूहा पास की पहाड़ी पर रहता था। उसने सभी को वहीं चलने का इशारा किया।

कुछ ही देर में वे चूहे के बिल के पास पहुंचे। चित्रगुप्त ने ज़ोर से आवाज़ लगाई—"भाई हिरण्यक! बाहर आओ, हमें तुम्हारी मदद चाहिए!"

चूहा बाहर आया और हालात देखकर तुरंत समझ गया कि दोस्त मुश्किल में हैं। उसने बिना देर किए अपने तेज़ दांतों से जाल काटना शुरू कर दिया। कुछ ही मिनटों में पूरा जाल कट चुका था और सभी कबूतर आज़ाद हो गए।

चित्रगुप्त ने अपने मित्र हिरण्यक को धन्यवाद दिया और फिर पूरा झुंड आज़ादी की हवा में ऊंची उड़ान भरने लगा।

शिक्षा:

"एकता में शक्ति होती है। मिलकर हम बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी हरा सकते हैं!"