ईश्वर की सच्ची परीक्षा (Ishwar Ki Sacchi Pariksha)

गहरी रात का सन्नाटा था। जंगल के बीचों-बीच एक बुजुर्ग व्यक्ति ठंड से काँपते हुए किसी अज्ञात स्थान की ओर बढ़ रहे थे। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ झलक रही थीं, मानो किसी बहुत बड़ी परीक्षा से गुजर रहे हों। अचानक, एक रहस्यमयी आवाज़ आई, "क्या तुम सच में इस परीक्षा के लिए तैयार हो?" वे चौंक गए। उन्होंने चारों ओर देखा, लेकिन कोई नहीं था। क्या यह उनका वहम था, या सच में ईश्वर उन्हें परख रहे थे? इसी उलझन में वे आगे बढ़ते रहे...

ईश्वर की सच्ची परीक्षा (Ishwar Ki Sacchi Pariksha)

ईश्वर की सच्ची परीक्षा (Ishwar Ki Sacchi Pariksha)


गाँव में एक संत रहते थे, जिनका नाम 'महात्मा आनंद' था। वे सच्चे भक्त थे और ईश्वर में उनकी अटूट श्रद्धा थी। उनका पूरा जीवन भक्ति और सेवा में बीता था। एक दिन, गाँव के राजा ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। राजा को विश्वास नहीं था कि ईश्वर किसी की मदद कर सकते हैं।

एक दिन राजा ने महात्मा आनंद को दरबार में बुलाया और कहा, "अगर तुम्हारे ईश्वर सच में हैं, तो वे तुम्हारी रक्षा जरूर करेंगे। हम तुम्हें एक निर्जन जंगल में अकेला छोड़ देंगे, अगर ईश्वर सच में तुम्हारे साथ हैं, तो वे तुम्हारी रक्षा करेंगे।"

महात्मा आनंद मुस्कुराए और बोले, "मेरा विश्वास अडिग है, राजन। जो भी होगा, वह ईश्वर की इच्छा से होगा।"

जंगल की यात्रा

राजा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे महात्मा आनंद को जंगल में छोड़ आएँ। वह जंगल खतरनाक था, जंगली जानवरों से भरा हुआ। महात्मा आनंद को वहाँ अकेला छोड़ दिया गया। रात का समय था, ठंडी हवाएँ चल रही थीं, और चारों ओर घना अंधेरा था।

लेकिन महात्मा आनंद डरे नहीं। उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं और ईश्वर का ध्यान करने लगे। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि उन्हें बाहरी दुनिया की कोई चिंता नहीं थी।

ईश्वर की लीला

रात के तीसरे पहर, जब भयंकर ठंड थी, एक शेर उनके सामने आया। राजा और उसके सैनिक छिपकर यह सब देख रहे थे। सभी को लगा कि अब महात्मा आनंद का अंत निश्चित है। लेकिन तभी एक चमत्कार हुआ। शेर महात्मा आनंद के पास आकर बैठ गया, मानो वह कोई पालतू पशु हो। महात्मा आनंद ने धीरे से शेर के सिर पर हाथ फेरा और वह शांत हो गया। यह देखकर राजा और उसके सैनिक अचंभित रह गए।

अगले दिन राजा ने महात्मा आनंद को दरबार में बुलाया और पूछा, "यह कैसे संभव हुआ?"

महात्मा आनंद मुस्कुराए और बोले, "राजन, जब मनुष्य सच्चे मन से ईश्वर का स्मरण करता है, तो स्वयं ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं। यह मेरा नहीं, ईश्वर का ही चमत्कार था।"

राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने महात्मा आनंद से क्षमा माँगी और ईश्वर में अपनी आस्था प्रकट की।

कहानी का सारांश:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब हम सच्चे मन से ईश्वर में विश्वास रखते हैं, तो वे हमारी हर परिस्थिति में सहायता करते हैं। कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन श्रद्धा और भक्ति से हम उनका सामना कर सकते हैं।