श्रद्धा और सब्र का फल (Shraddha Aur Sabr Ka Phal)

रात्रि का समय था। मंदिर में घना अंधकार छाया हुआ था। दीपक की लौ मंद पड़ रही थी, लेकिन एक वृद्धा वहाँ अब भी बैठी थी। उसकी आँखों में आशा की किरण झलक रही थी। मंदिर के पुजारी ने धीरे से पूछा, "माता, इतनी रात हो गई, अब घर क्यों नहीं जातीं?"

वृद्धा ने हल्की मुस्कान के साथ उत्तर दिया, "जब तक मेरे प्रभु की कृपा नहीं मिलती, मैं यहाँ से हिलूंगी भी नहीं!"

पुजारी आश्चर्यचकित रह गए। आखिर इस वृद्धा के जीवन में ऐसा क्या हुआ था कि उसकी भक्ति अटूट थी?


श्रद्धा और सब्र का फल (Shraddha Aur Sabr Ka Phal)

श्रद्धा और सब्र का फल (Shraddha Aur Sabr Ka Phal)


यह कहानी राजस्थान के एक छोटे से गाँव की है, जहाँ आनंदी नाम की एक वृद्धा रहती थी। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा था। पति की मृत्यु हो चुकी थी, बेटा शहर चला गया था, और घर में केवल एक टूटी-फूटी झोंपड़ी और एक गाय थी। लेकिन आनंदी के पास कुछ था जो उसे दुनिया के हर दुख से ऊपर रखता था – उसकी अटूट श्रद्धा और भक्ति।

वह हर सुबह गाँव के मंदिर में जाती, भगवान विष्णु की मूर्ति को फूल चढ़ाती और घंटों भजन गाती। उसके पास कुछ भी नहीं था, लेकिन फिर भी वह हर दिन अपनी गाय के दूध से भगवान का अभिषेक करती। गाँव के कुछ लोग उस पर हँसते और कहते, "माँ, भगवान को दूध चढ़ाने से पेट नहीं भरता! अपने लिए भी कुछ सोचो!"

लेकिन आनंदी हमेशा मुस्कुराकर कहती, "भगवान ही मेरे पालनहार हैं। जब तक वे चाहते हैं, मैं भूखी नहीं रहूंगी।"

भगवान की परीक्षा

एक दिन गाँव में अकाल पड़ गया। खेत सूख गए, तालाब की मछलियाँ मरने लगीं, और लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा। आनंदी के पास भी अब दूध देने के लिए कुछ नहीं था। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह फिर भी मंदिर जाती और भगवान के सामने बैठकर कहती, "हे प्रभु! आपने जब तक चाहा, मुझे दिया। आज मैं खाली हाथ हूँ, लेकिन मेरी श्रद्धा कभी खाली नहीं होगी।"

कई दिन बीत गए। एक दिन, वह बहुत भूखी थी। उसे लगा कि शायद अब वह ज्यादा दिन तक नहीं बचेगी। लेकिन फिर भी, वह मंदिर गई और भगवान के सामने बैठ गई।

तभी अचानक मंदिर के गर्भगृह से एक आवाज़ आई, "आनंदी, क्या तुम मुझ पर विश्वास रखती हो?"

आनंदी ने तुरंत जवाब दिया, "प्रभु, आप ही तो मेरा सब कुछ हैं!"

अचानक, मंदिर के सामने एक अजनबी खड़ा था। उसके हाथ में एक बड़ा थैला था। उसने आनंदी को देखकर कहा, "माँ, मुझे नहीं पता क्यों, लेकिन मैं अपने रास्ते से भटककर यहाँ आ गया। मुझे लगा कि यह अन्न तुम्हारे लिए है। कृपया इसे स्वीकार करो।"

आनंदी की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने भगवान विष्णु की मूर्ति की ओर देखा और मुस्कुरा कर कहा, "मैं जानती थी, मेरे प्रभु कभी मुझे भूखा नहीं रख सकते!"

गाँव में फैला संदेश

जब गाँव वालों को यह बात पता चली, तो वे चकित रह गए। उन्होंने आनंदी से पूछा, "माँ, यह कैसे हुआ?"

आनंदी ने बस इतना ही कहा, "श्रद्धा और सब्र का फल भगवान खुद देते हैं। जब तक विश्वास अडिग होता है, तब तक कोई भी संकट स्थायी नहीं होता।"

उस दिन के बाद, गाँव के लोग भी मंदिर जाने लगे। आनंदी की भक्ति ने पूरे गाँव को श्रद्धा की राह दिखा दी।


कहानी का सारांश:

यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं, लेकिन वे कभी भी सच्चे श्रद्धालुओं को निराश नहीं करते। श्रद्धा और सब्र का फल देर से ही सही, लेकिन निश्चित रूप से मिलता है।