किसी समय की बात है, एक घने जंगल में तरह-तरह के पक्षी और जानवर रहा करते थे। उस जंगल के पक्षियों का राजा एक हंस था, जो राजपाट से अधिक ईश्वर की भक्ति में लीन रहता था। वह न तो शासन के कार्यों में रुचि लेता था, न ही अपनी प्रजा की समस्याओं पर ध्यान देता था। धीरे-धीरे जंगल की व्यवस्था बिगड़ने लगी, और बाहरी पक्षी भी वहां अतिक्रमण करने लगे।
राजा की उदासीनता से चिंतित होकर, जंगल के सभी मंत्री और सेनापति एक महत्वपूर्ण सभा में एकत्र हुए। सभा में कबूतर, तोता, उल्लू, मोर, बगुला, कोयल, और चिड़िया जैसे कई पक्षी शामिल हुए। सभा के दौरान सभी ने एकमत होकर निर्णय लिया कि हंस को हटाकर किसी नए राजा का चुनाव किया जाए, जो राज्य की रक्षा और विकास कर सके।
उल्लू को राजा बनाने का निर्णय
कई दिनों की चर्चा के बाद, सभी पक्षियों ने उल्लू को अपना नया राजा चुनने का निश्चय किया। उल्लू अपनी तीक्ष्ण दृष्टि और रात्रि में देखने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध था, जिससे सभी को लगा कि वह एक योग्य राजा साबित होगा। उल्लू के राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू हो गईं। पवित्र नदियों से जल लाया गया, मंत्रोच्चार होने लगे, और पूरे जंगल में उल्लास का वातावरण छा गया।
कौवे का आगमन और विरोध
तभी वहां एक कौआ आ पहुंचा। उसने भव्य आयोजन को देखकर सोचा कि अवश्य ही कोई विशेष अनुष्ठान हो रहा है। जिज्ञासा से प्रेरित होकर वह सभा स्थल के भीतर चला गया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि उल्लू का राज्याभिषेक हो रहा है। यह जानकर कौआ ठहाका मारकर हंस पड़ा और व्यंग्यात्मक स्वर में बोला—
"जब इस जंगल में मोर, तोता, सारस जैसे सुंदर और बुद्धिमान पक्षी हैं, तो फिर यह टेढ़ी चोंच वाला, अप्रिय स्वर वाला और दिन में न देखने वाला उल्लू राजा कैसे बन सकता है?"
कौवे ने अपनी बात आगे बढ़ाई—
"उल्लू का स्वभाव क्रोधी और कठोर होता है। ऐसे पक्षी को राजा बनाना सही नहीं है। हमारे वर्तमान राजा हंस अभी भी जीवित हैं, और जब तक कोई राजा जीवित हो, दूसरा राजा नहीं बनाया जा सकता। यह शास्त्रों के भी विरुद्ध है।"
कौवे की बात सुनकर सभी पक्षी सोच में पड़ गए। उन्होंने महसूस किया कि कौवे के तर्क में सच्चाई है। नतीजतन, उल्लू का राज्याभिषेक रोक दिया गया, और सभी पक्षी अपने-अपने घर लौट गए।
उल्लू और कौवे की शत्रुता
जब सभी पक्षी वहां से चले गए, तो केवल कौआ और उल्लू ही सभा स्थल पर बचे। उल्लू ने क्रोधित होकर कौवे की ओर घूरते हुए कहा—
"दुष्ट कौवे! तेरे कारण मेरा राज्याभिषेक नहीं हो सका। अगर तू बीच में न आता, तो आज मैं राजा होता। मैं इस अपमान का बदला अवश्य लूंगा। आज से मेरे वंश और तेरे वंश के बीच शत्रुता जन्म ले चुकी है।"
कौवे को भी इस बात का एहसास हुआ कि बिना कारण किसी के मामले में हस्तक्षेप करना हानिकारक हो सकता है। वह चुपचाप वहां से उड़ गया। तभी से कौवे और उल्लुओं के बीच दुश्मनी चली आ रही है।
शिक्षा:
"हमें बिना कारण दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे अनावश्यक शत्रुता उत्पन्न हो सकती है।"
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