पंचतंत्र की उत्पत्ति (Panchatantra Ki Utpatti)

प्राचीन काल में राजा अमरशक्ति महिलारोप्य नगर के शासक थे। वह वीर, न्यायप्रिय और बुद्धिमान थे, लेकिन उनके तीनों पुत्र—बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति—अशिक्षित और मूर्ख थे। राजा ने उन्हें शिक्षित करने का प्रयास किया, लेकिन वे अध्ययन में रुचि नहीं रखते थे। इससे राजा चिंतित हो गए कि उनके बाद राज्य का क्या होगा।

राजा के मंत्री सुमति ने उन्हें आचार्य विष्णु शर्मा के बारे में बताया, जो नीतिशास्त्र के विद्वान थे। राजा ने आचार्य से अपने पुत्रों को शिक्षित करने की प्रार्थना की और इनाम का वादा किया। आचार्य विष्णु शर्मा ने कहा कि वे छह माह में राजकुमारों को कुशल राजनीतिज्ञ बना देंगे।

आचार्य ने शिक्षा देने के लिए कहानियों की रचना की, जिनमें जानवरों के पात्रों के माध्यम से राजनीति, नैतिकता और व्यवहारिक ज्ञान सिखाया गया। इन कहानियों को पाँच भागों में बाँटा गया, जिसे पंचतंत्र कहा जाता है। इन कहानियों से राजकुमार बुद्धिमान बन गए और राज्य चलाने योग्य हो गए।

पंचतंत्र के पाँच भाग (Panchatantra Ke Paanch Bhag)

पंचतंत्र की उत्पत्ति (Panchatantra Ki Utpatti)


1. मित्रभेद (Mitrabhed)

मित्रों के बीच गलतफहमियों और विश्वासघात की कहानियाँ। इसमें पिंगलक नामक शेर और संजीवक बैल की मित्रता को एक चालाक सियार द्वारा तोड़ने का वर्णन है।

2. मित्रसंप्राप्ति (Mitra Samprapti)

सच्चे मित्रों की प्राप्ति और उनके लाभ पर आधारित कहानियाँ। इसमें कौआ, हिरण, चूहा और कछुआ अपनी मित्रता के कारण संकटों से बचते हैं।

3. काकोलूकीयम् (Kakolukiyam)

कौवों और उल्लुओं की शत्रुता की कहानियाँ। इसमें बताया गया है कि जो व्यक्ति अपने शत्रु और समस्याओं को अनदेखा करता है, उसका विनाश निश्चित होता है।

4. लब्धप्रणाश (Labdh Pranash)

हाथ आई वस्तु को खो देने की कहानियाँ। इसमें वानर और मगरमच्छ की प्रसिद्ध कहानी है, जहाँ वानर अपनी चतुराई से मगरमच्छ से बच निकलता है।

5. अपरीक्षित कारक (Aparikshit Kaarak)

बिना सोचे-समझे कोई कार्य करने के दुष्परिणाम दर्शाने वाली कहानियाँ। इसमें नेवले और ब्राह्मण के पुत्र की कहानी आती है, जहाँ ब्राह्मण की पत्नी बिना विचारे नेवले को मार देती है और बाद में पछताती है।

निष्कर्ष (Nishkarsh)

पंचतंत्र की कहानियाँ राजनीति, नैतिकता और व्यावहारिकता का अद्भुत संगम हैं। इन कहानियों ने अनगिनत पीढ़ियों को शिक्षा दी है और आज भी यह प्रासंगिक बनी हुई हैं।