🕉️ चंद्रदेव का श्राप और महादेव की कृपा (Chandradev Ka Shrap Aur Mahadev Ki Kripa) 🌙

गहरी रात में आकाश चांदी की तरह चमक रहा था। तारों की मंद रोशनी के बीच चंद्रमा अपनी पूर्ण आभा बिखेर रहा था, लेकिन उसकी चमक में आज एक अनोखी बेचैनी थी। देवताओं की सभा में कोलाहल मचा हुआ था—चंद्रदेव पर एक भयंकर श्राप लगा था! उनकी रोशनी धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही थी, मानो उनका अस्तित्व ही मिटता जा रहा हो। देवता, ऋषि और स्वयं नारद मुनि भी इस विकट समस्या का समाधान नहीं खोज पा रहे थे। तभी एक दिव्य प्रकाश फैला, और सभी को एक ही नाम याद आया—भगवान महादेव! क्या महादेव इस श्राप को समाप्त कर सकते थे? क्या चंद्रदेव की खोई हुई आभा वापस आ सकती थी?


🌙 चंद्रदेव को मिला था श्राप

🕉️ चंद्रदेव का श्राप और महादेव की कृपा (Chandradev Ka Shrap Aur Mahadev Ki Kripa) 🌙


पुराणों के अनुसार, चंद्रदेव को राजा दक्ष ने भयानक श्राप दिया था। चंद्रदेव ने दक्ष की पुत्री 27 नक्षत्र कन्याओं से विवाह किया था, लेकिन वे केवल रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे। अन्य पत्नियों ने अपने पिता दक्ष से शिकायत की। दक्ष ने क्रोधित होकर चंद्रदेव को श्राप दे दिया—

"हे चंद्र! तुम धीरे-धीरे अपनी चमक खो दोगे और क्षय रोग से ग्रस्त होकर अंततः विलीन हो जाओगे!"

श्राप के प्रभाव से चंद्रमा की कांति घटने लगी, और वे पीड़ित होने लगे। देवताओं ने बहुत प्रयास किया, लेकिन कोई उपाय नहीं सूझा। तब नारद मुनि ने कहा,

"संपूर्ण सृष्टि में केवल महादेव ही इस श्राप का निवारण कर सकते हैं।"


🙏 महादेव की तपस्या और वरदान

चंद्रदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या शुरू कर दी। उन्होंने कठिन व्रत रखे, जल त्याग दिया, और हिमालय में तप करने लगे। वर्षों बाद जब उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई, तब भगवान शिव प्रकट हुए।

उन्होंने कहा, "चंद्रदेव, तुम्हारे अहंकार ने तुम्हें यह कष्ट दिया, लेकिन मैं तुम्हें पूरी तरह नष्ट नहीं होने दूँगा।"

शिवजी ने अपनी जटा खोलकर चंद्रदेव को अपने मस्तक पर स्थान दिया। उनकी कृपा से चंद्रदेव धीरे-धीरे फिर से चमकने लगे। लेकिन श्राप को पूरी तरह टाला नहीं जा सकता था, इसलिए चंद्रमा शुक्ल पक्ष में बढ़ते हैं और कृष्ण पक्ष में घटते हैं।


🌿 चंद्रशेखर रूप और शिव की महिमा

भगवान शिव ने जब चंद्रदेव को अपने मस्तक पर धारण किया, तब वे चंद्रशेखर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि अहंकार विनाश का कारण बनता है, लेकिन भक्ति और तपस्या से भगवान की कृपा प्राप्त हो सकती है।


🔚 निष्कर्ष (Summary) 📜

इस कथा में हमें यह संदेश मिलता है कि अहंकार विनाश का मार्ग है, लेकिन सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान शिव की कृपा प्राप्त हो सकती है। चंद्रदेव का उदाहरण यह सिखाता है कि श्राप को भी तपस्या और महादेव की कृपा से सुधारा जा सकता है।