घुप अंधेरा था। मंदिर के विशाल प्रांगण में टिमटिमाते दीपों की मद्धम रोशनी ही एकमात्र उजाला थी। आधी रात का समय था, और चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। लेकिन उसकी आँखों में नींद नहीं थी।
वह अकेला नहीं था। उसकी साँसें तेज़ थीं, और हृदय आशंका से धड़क रहा था। उसे बताया गया था कि अगर कोई इस मंदिर में सच्चे मन से रात भर जागरण करे, तो स्वयं भगवान शिव दर्शन देते हैं।
क्या यह सच था? या सिर्फ एक दंतकथा?
हवा में हल्की गूँज हुई। अचानक, गर्भगृह के दरवाज़े अपने-आप खुल गए…
शिव के साक्षात दर्शन" (Shiv Ke Sakshat Darshan)
अविनाश एक सामान्य युवक था, जो हमेशा जीवन के रहस्यों को जानने के लिए जिज्ञासु रहता था। जब उसने सुना कि एक पुराने मंदिर में भगवान शिव के साक्षात दर्शन हो सकते हैं, तो वह अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पाया।
गाँव के बुज़ुर्गों ने उसे बताया कि यह कोई साधारण मंदिर नहीं है।
"जो भी यहाँ रात भर जागरण करता है और सच्चे मन से भक्ति करता है, उसे महादेव स्वयं दर्शन देते हैं। लेकिन यह उतना आसान नहीं, जितना लगता है।"
अविनाश ने यह चुनौती स्वीकार कर ली। वह मंदिर पहुँचा और गर्भगृह के ठीक सामने बैठकर 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करने लगा।
रात गहरी होती जा रही थी। हवा अचानक तेज़ हो गई, और मंदिर के घंटों की आवाज़ गूँजने लगी।
फिर अचानक… मंदिर का शिवलिंग प्रकाश से जगमगा उठा!
अविनाश ने अपनी आँखों से वह दृश्य देखा, जो किसी भी इंसान के लिए अविश्वसनीय था।
शिवलिंग से एक दिव्य प्रकाश निकल रहा था, और धीरे-धीरे उसमें से एक विशाल आकृति प्रकट हुई— स्वयं भगवान शिव!
उनका शरीर चंद्रमा की रोशनी जैसा चमक रहा था। गले में नाग, सिर पर गंगाजल की धारा, और तीसरी आँख से ऊर्जा की लहरें निकल रही थीं। उनका तेज़ इतना प्रखर था कि अविनाश को अपनी आँखें बंद करनी पड़ीं।
भगवान शिव की गूँजती आवाज़ सुनाई दी—
"वत्स, तुमने हमें पाने के लिए कठिन तप किया है। बताओ, तुम क्या चाहते हो?"
अविनाश काँपते हुए उनके चरणों में गिर पड़ा।
"हे महादेव! मैं जीवन का वास्तविक सत्य जानना चाहता हूँ। कृपया मुझे ज्ञान प्रदान करें!"
भगवान शिव मुस्कुराए और बोले—
"जीवन का सबसे बड़ा सत्य यही है कि सब कुछ नश्वर है। जो जन्मा है, वह मरेगा। जो मिला है, वह छूटेगा। लेकिन जो सच्ची भक्ति करता है, उसका कभी अंत नहीं होता। सच्चा ज्ञान स्वयं को पहचानने में है, बाहरी दुनिया में नहीं।"
अविनाश की आँखों से आँसू बह निकले। उसे अपने सारे प्रश्नों का उत्तर मिल गया था।
भगवान शिव ने आशीर्वाद देकर कहा—
"जाओ, और इस सत्य को संसार में फैलाओ। जो भी सच्चे मन से हमें पुकारेगा, हम उसे अवश्य दर्शन देंगे।"
अगले ही क्षण, भगवान शिव प्रकाश में विलीन हो गए। मंदिर में फिर से वही सन्नाटा छा गया, लेकिन अविनाश का हृदय शिवमय हो चुका था।
सारांश
यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान को पाने के लिए केवल बाहरी साधन नहीं, बल्कि सच्चे मन की आवश्यकता होती है। भगवान शिव ने अविनाश को यह ज्ञान दिया कि संसार की हर वस्तु नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है। जो सच्चे मन से भक्ति करता है, उसे ईश्वर का साक्षात अनुभव होता है।
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