विष्णु का जागरण" (Vishnu Ka Jagran)

तेज आँधियों के बीच वह जंगल के संकरे रास्ते पर दौड़ रहा था। उसकी साँसें उखड़ रही थीं, और पसीने से भीगा उसका शरीर थकावट से कांप रहा था। लेकिन उसके मन में डर नहीं, बल्कि एक अजीब-सी जिज्ञासा थी।

"अगर यह सच निकला, तो यह पूरी दुनिया के लिए चमत्कार होगा!"

उसने सुनी-सुनाई कहानियों पर कभी विश्वास नहीं किया था, लेकिन इस बार हालात अलग थे। सामने एक विशाल गुफा थी, जिसके बारे में कहा जाता था कि वहाँ स्वयं भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन हैं।

उसने एक गहरी साँस ली और गुफा के अंधकार में कदम बढ़ा दिए…

विष्णु का जागरण" (Vishnu Ka Jagran)

विष्णु का जागरण" (Vishnu Ka Jagran)


आदित्य एक युवा साधक था, जिसे शास्त्रों का गहरा ज्ञान था। वह वर्षों से यह मानता आया था कि भगवान केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में बसे हैं। लेकिन उसकी सोच उस दिन बदल गई, जब गाँव के एक बुज़ुर्ग ने उसे "नागगुफा" के बारे में बताया।

"कहते हैं कि हर हज़ार वर्षों में सिर्फ एक बार भगवान विष्णु वहाँ प्रकट होते हैं। अगर कोई भाग्यशाली भक्त उस समय वहाँ उपस्थित हो, तो उसे श्रीहरि के साक्षात दर्शन होते हैं!"

यह सुनकर आदित्य की जिज्ञासा बढ़ गई। उसने निर्णय किया कि वह इस रहस्य को स्वयं खोजेगा।

गुफा के अंदर घुसते ही उसे एक अजीब-सी शांति महसूस हुई। हवा में हल्की-हल्की महक थी, जैसे कोई दिव्य शक्ति वहाँ मौजूद हो। आगे बढ़ते ही उसे एक विशाल जलकुंड दिखा, और उसके बीचों-बीच एक विशाल शेषनाग की आकृति बनी हुई थी।

वह आगे बढ़ा और जैसे ही उसने जलकुंड में झाँका, उसके शरीर में बिजली-सी दौड़ गई।

सामने जल के अंदर भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन थे!

उनका श्यामल शरीर जल में हल्की रोशनी बिखेर रहा था। चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे। उन्होंने पीताम्बर धारण किया हुआ था, और उनके नीचे शेषनाग अपने फन फैलाए विराजमान थे।

आदित्य आश्चर्य से काँपने लगा।

"क्या मैं सच में साक्षात विष्णु भगवान के दर्शन कर रहा हूँ?"

अचानक, जलकुंड में हलचल हुई। शेषनाग धीरे-धीरे हिलने लगे, और भगवान विष्णु ने अपनी आँखें खोलीं। उनका स्वर गंभीर और सौम्य था—

"आदित्य, तुम यहाँ क्यों आए हो?"

आदित्य घुटनों के बल गिर गया।

"प्रभु! मैंने सुना था कि हर हज़ार साल में आप यहाँ प्रकट होते हैं। मुझे विश्वास नहीं था, लेकिन आज आपके दर्शन करके मैं धन्य हो गया!"

भगवान विष्णु मुस्कुराए।

"श्रद्धा और विश्वास के बिना भक्ति अधूरी है। जो बिना शर्त प्रेम और समर्पण के साथ हमें खोजता है, हम उसे अवश्य दर्शन देते हैं। बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है?"

आदित्य की आँखों से आँसू छलक पड़े।

"हे प्रभु! मैं बस यही चाहता हूँ कि दुनिया को यह एहसास हो कि आप सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के हृदय में हैं। लोग असली भक्ति को भूल चुके हैं, वे केवल दिखावे में लगे हैं। कृपया उन्हें सही मार्ग दिखाएँ!"

भगवान विष्णु ने आशीर्वाद देते हुए कहा—

"तुम्हारी बात सत्य है। लेकिन याद रखो, ईश्वर को देखने के लिए आँखों की नहीं, श्रद्धा की ज़रूरत होती है। जाओ, और इस संदेश को फैलाओ। जो सच्चे मन से भक्ति करेगा, उसे हमारे दर्शन अवश्य होंगे!"

इतना कहकर भगवान विष्णु धीरे-धीरे जलकुंड में लीन हो गए, और वहाँ पुनः शांति छा गई।

आदित्य ने गुफा के बाहर आकर देखा—आसमान में सूर्य की पहली किरण चमक रही थी।

सारांश

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ईश्वर को पाने के लिए बाहरी दिखावे की नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और समर्पण की आवश्यकता होती है। भगवान विष्णु ने आदित्य को सिखाया कि भक्ति का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सच्चे हृदय से समर्पण है।