चुहिया से कन्या और फिर से चुहिया (Chuhiyan Se Kanya Aur Phir Se Chuhiyan)

बहुत समय पहले की बात है, एक महान तपस्वी एकांत जंगल में अपनी साधना में लीन रहते थे। वे अत्यंत ज्ञानी और तपस्वी थे, परंतु उनके जीवन में एक कमी थी—उनकी कोई संतान नहीं थी। उनकी पत्नी को भी इस बात का गहरा दुख था, लेकिन उन्होंने इसे अपने भाग्य का लेख मानकर स्वीकार कर लिया था।

अचानक घटी एक विचित्र घटना

चुहिया और मूषकराज का विवाह | Chuhiya aur Mooshakraj ka Vivah


एक दिन, तपस्वी नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान के उपरांत, जब वे हथेली में जल लेकर आचमन कर रहे थे, तभी अचानक उनकी हथेलियों में एक नन्ही चुहिया आ गिरी। वे चौंक गए और ऊपर आसमान की ओर देखा। उन्होंने देखा कि एक विशाल बाज आकाश में उड़ रहा था, और संभवतः उसी की चोंच से यह चुहिया छूटकर नीचे गिरी थी।

तपस्वी को चुहिया पर दया आ गई। उन्होंने उसे अपनी अंजलि में उठाया और आश्रम लौट आए। वहां उन्होंने उसे जड़ी-बूटियों से उपचारित किया। कुछ ही दिनों में वह स्वस्थ हो गई और बड़ी चंचलता से आश्रम में घूमने लगी। तपस्वी की पत्नी भी उसे स्नेह से देखने लगीं।

चुहिया से बनी कन्या

एक दिन तपस्वी की पत्नी ने उनसे कहा, "स्वामी, हमारे कोई संतान नहीं है। क्यों न इस नन्ही चुहिया को ही अपनी बेटी बना लें?"

तपस्वी कुछ क्षण सोच में पड़े, फिर अपनी दिव्य शक्ति से चुहिया को एक सुंदर कन्या में बदल दिया। वह कन्या अनुपम सुंदरी थी, बड़ी सरल और मधुर स्वभाव वाली थी। दोनों ने उसे अपनी पुत्री की तरह पाला।

समय बीतता गया, और कन्या धीरे-धीरे विवाह योग्य हो गई। एक दिन तपस्वी की पत्नी ने कहा, "स्वामी, अब हमारी पुत्री विवाह योग्य हो गई है। उसके लिए एक योग्य वर खोजिए।"

सर्वोत्तम वर की खोज

तपस्वी ने सोचा और बोले, "हमारी पुत्री के लिए सूर्य से उत्तम वर कौन हो सकता है?"

वे सूर्यदेव के पास पहुंचे और उनसे कहा, "हे दिव्य देव! क्या आप मेरी पुत्री से विवाह करेंगे?"

सूर्यदेव ने हंसते हुए उत्तर दिया, "मुझसे भी अधिक शक्तिशाली तो बादल हैं, जो मुझे ढक लेते हैं और मेरी किरणों को पृथ्वी तक नहीं जाने देते।"

तपस्वी अपनी पुत्री के पास लौटे और पूछा, "बेटी, क्या तुम सूर्यदेव को वर के रूप में स्वीकार करोगी?"

कन्या ने सिर झुका लिया और बोली, "पिताश्री, सूर्यदेव बहुत तेजस्वी और गर्म हैं। मैं उनके साथ नहीं रह पाऊंगी। कृपया कोई और वर खोजिए।"

बादल, वायु और पर्वत की परीक्षा

अब तपस्वी बादलों के पास पहुंचे और उनसे वही प्रश्न किया। बादल मुस्कुराए और बोले, "मुझसे अधिक शक्तिशाली तो वायु है, जो मुझे किसी भी दिशा में उड़ा सकती है।"

तपस्वी ने वायु से वही प्रश्न किया, तो वायु ने उत्तर दिया, "मुझसे भी अधिक शक्तिशाली तो पर्वत है, जो मेरे वेग को भी रोक सकता है।"

तपस्वी अपनी पुत्री के पास लौटे और पर्वत को वर के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन कन्या ने कहा, "पिताश्री, पर्वत तो कठोर और स्थिर हैं। वे न हिल सकते हैं, न बोल सकते हैं। मैं इनके साथ जीवन नहीं बिता सकती। कृपया और कोई वर खोजिए।"

अंततः उचित वर की प्राप्ति

अब तपस्वी पर्वत के पास गए और उससे पूछा कि उससे भी अधिक शक्तिशाली कौन है। पर्वत हंसते हुए बोला, "हे ऋषिवर! मुझसे भी शक्तिशाली तो चूहा है, जो मुझे खोदकर बिल बना लेता है और मेरी कठोरता को भी जीत सकता है।"

तपस्वी को अब समझ आ गया कि उनकी पुत्री के लिए सबसे उपयुक्त वर कौन होगा। उन्होंने मूषकराज (चूहों के राजा) को बुलाया और अपनी पुत्री के सामने प्रस्तुत किया।

जैसे ही कन्या ने मूषकराज को देखा, उसके भीतर एक अजीब-सा लगाव उमड़ पड़ा। उसने तुरंत कहा, "पिताश्री, मुझे यही वर चाहिए।"

तपस्वी मुस्कुराए और अपने तपोबल से कन्या को पुनः चुहिया बना दिया। इसके बाद, उसकी शादी मूषकराज से कर दी गई।

इस प्रकार, चुहिया से बनी कन्या अंततः अपने वास्तविक स्वरूप में लौट आई और अपने अनुरूप जीवनसाथी के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।


कहानी से सीख

👉 प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाना सही नहीं है।
👉 हर व्यक्ति के लिए सबसे उपयुक्त जीवनसाथी वही होता है, जो उसके अनुरूप हो।
👉 बल, शक्ति और संपत्ति ही सर्वश्रेष्ठ नहीं होते, बल्कि स्वभाव और प्रकृति भी महत्वपूर्ण होते हैं।