भक्त का संकल्प" (Bhakt Ka Sankalp)

चारों ओर घना अंधेरा था। जंगल के बीचों-बीच एक टूटी-फूटी पगडंडी, जिस पर सिर्फ जंगली जानवरों के पैरों के निशान थे। तेज़ हवाओं से पेड़ों की शाखाएँ चरमराने लगीं, और बीच-बीच में उल्लुओं की आवाज़ उस वीरान माहौल को और डरावना बना रही थी।

रात के इस पहर वहाँ किसी का आना असंभव था… फिर भी, एक व्यक्ति उस सुनसान रास्ते पर अकेला चला जा रहा था। उसके हाथ में एक जलता हुआ दीपक था, जो अंधेरे को चीरते हुए हल्की रोशनी फैला रहा था। उसके माथे पर चंदन का तिलक और आँखों में एक अजीब सा आत्मविश्वास था।

लेकिन वह कौन था? और इतनी रात में वह इस डरावने जंगल में क्या कर रहा था? किसी को नहीं पता था कि उसकी यह यात्रा केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक परीक्षा थी…

भक्त का संकल्प" (Bhakt Ka Sankalp)

भक्त का संकल्प" (Bhakt Ka Sankalp)


वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि देवदत्त था—गाँव का एक साधारण लेकिन अत्यंत भक्तिमान व्यक्ति। उसने संकल्प लिया था कि जब तक उसे अपने आराध्य देव का साक्षात्कार नहीं होगा, तब तक वह इस कठिन तपस्या को नहीं छोड़ेगा।

लोगों ने उसे बहुत समझाया, "रात के इस पहर वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है। वह जंगल तो शापित है!"

लेकिन देवदत्त ने किसी की न सुनी। उसका विश्वास अडिग था। उसे अपने ईश्वर पर भरोसा था।

गहरी रात में जब वह मंदिर के पास पहुँचा, तो देखा कि वहाँ का द्वार टूटा हुआ था। वर्षों से कोई भी वहाँ पूजा-अर्चना के लिए नहीं आया था। लेकिन देवदत्त को कोई भय नहीं था। उसने अपने दीपक को मंदिर के अंदर रखा और सफाई करने लगा।

जैसे ही उसने वहाँ झाड़ू लगाना शुरू किया, अचानक मंदिर में रखी घंटी अपने आप बजने लगी। ठंडी हवा का एक झोंका अंदर आया, और एक अदृश्य शक्ति ने उसे पीछे की ओर धकेल दिया।

देवदत्त घबराया नहीं। उसने अपनी आँखें बंद कीं और ज़ोर से कहा, "अगर यह कोई मायावी शक्ति है तो चली जाए! लेकिन अगर यह स्वयं भगवान हैं, तो कृपया मुझे दर्शन दें!"

अचानक, मंदिर के गर्भगृह में रोशनी फैल गई। वहाँ एक दिव्य मूर्ति प्रकट हुई, जो अब तक घने अंधेरे में छिपी थी। देवदत्त की आँखों से आँसू बहने लगे। वह समझ गया कि उसकी भक्ति स्वीकार हो चुकी है।


सारांश

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में संकल्प और साहस दोनों होने चाहिए। देवदत्त ने अपने विश्वास के बल पर अकेले जंगल में जाकर एक वीरान मंदिर को फिर से जागृत किया। भगवान कभी भी अपने सच्चे भक्तों को निराश नहीं करते, वे हर परिस्थिति में उनकी परीक्षा लेते हैं, लेकिन अंततः उनकी भक्ति को स्वीकार करते हैं।