हनुमान जी और रामनाम की शक्ति (Hanuman Ji Aur Ramnaam Ki Shakti)

घना अंधकार चारों ओर फैला हुआ था। जंगल के बीचों-बीच स्थित एक प्राचीन गुफा से रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा था। हवा में एक दिव्य सुगंध थी, और वातावरण में एक अलौकिक शांति व्याप्त थी। अचानक, गुफा के भीतर से घंटियों की मधुर ध्वनि गूँज उठी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई महाशक्ति जाग्रत हो रही हो। कौन था वह जो इस अंधकारमय रात में तेज प्रकाश से पूरे वन को प्रकाशित कर रहा था?

हनुमान जी और रामनाम की शक्ति (Hanuman Ji Aur Ramnaam Ki Shakti)

हनुमान जी और रामनाम की शक्ति (Hanuman Ji Aur Ramnaam Ki Shakti)


एक समय की बात है, जब भगवान श्रीराम अयोध्या में राज कर रहे थे। उनकी सेवा में हनुमान जी दिन-रात समर्पित रहते थे। वे श्रीराम के हर कार्य में सहयोग देते और उनके हर आदेश को शिरोधार्य मानते।

एक दिन, श्रीराम ने हनुमान जी से पूछा, "हनुमान! तुम रामनाम की महिमा को कितना समझते हो?" हनुमान जी ने विनम्रता से कहा, "प्रभु! रामनाम स्वयं एक अमृत है, इसकी शक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।" श्रीराम मुस्कुराए और बोले, "अच्छा! यदि ऐसा है, तो हमें इसका प्रमाण दो।"

हनुमान जी ने तुरंत एक पत्थर उठाया और उस पर रामनाम अंकित किया। फिर, सभी की आँखों के सामने उसे जल में प्रवाहित कर दिया। आश्चर्यजनक रूप से वह पत्थर पानी में नहीं डूबा, बल्कि तैरने लगा। यह देखकर सभी स्तब्ध रह गए।

उस समय महर्षि वाल्मीकि भी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने हनुमान जी की भक्ति और रामनाम की महिमा को देख स्वयं रामायण लिखने का निश्चय किया।

रामायण लेखन और हनुमान जी का त्याग

महर्षि वाल्मीकि ने जब रामायण की रचना प्रारंभ की, तो हनुमान जी ने भी अपनी भक्ति और समर्पण से प्रेरित होकर अपने नखों से एक अनोखी रामकथा लिखी। जब वाल्मीकि जी को यह ज्ञात हुआ कि हनुमान जी ने भी रामकथा लिखी है, तो वे उत्सुकता से उसे देखने गए।

हनुमान जी की रामकथा अत्यंत संक्षिप्त, लेकिन अत्यधिक प्रभावशाली थी। उसमें भगवान श्रीराम की लीला इतनी सुंदरता से वर्णित थी कि वाल्मीकि जी को लगा कि उनकी स्वयं की रचित रामायण शायद इतनी प्रभावशाली न हो।

वाल्मीकि जी के चेहरे पर चिंता देखकर हनुमान जी ने विनम्रता से पूछा, "गुरुदेव! क्या मेरी कथा में कोई त्रुटि है?" महर्षि बोले, "त्रुटि नहीं, बल्कि मेरी चिंता यह है कि तुम्हारी कथा इतनी प्रभावशाली है कि मेरी लिखी हुई रामायण शायद कोई पढ़े ही न।"

यह सुनकर हनुमान जी ने बिना किसी अहंकार के अपनी रामकथा को नष्ट कर दिया और बोले, "गुरुदेव! मेरा उद्देश्य सिर्फ श्रीराम की सेवा है, मेरा लेखन किसी प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं था।" यह देखकर वाल्मीकि जी की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने हनुमान जी को गले लगा लिया।

कहानी का सारांश
हनुमान जी का जीवन केवल बल और पराक्रम का नहीं, बल्कि भक्ति, त्याग और समर्पण का भी प्रतीक है। उनकी भक्ति इतनी सशक्त थी कि उन्होंने रामनाम की शक्ति को सिद्ध कर दिखाया। उनका निःस्वार्थ प्रेम और विनम्रता हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति में अहंकार का कोई स्थान नहीं होता। यह कथा हमें सिखाती है कि ईश्वर की सेवा ही सबसे बड़ा कर्तव्य है, और सच्चे भक्त को अपने कर्म पर गर्व नहीं, बल्कि समर्पण पर विश्वास होना चाहिए।