अचानक तेज़ हवा चलने लगी। मंदिर के प्रांगण में जलती दीपक की लौ कांपने लगी। कुछ क्षण पहले तक मंदिर में शांति थी, पर अब वहां एक अजीब सी बेचैनी थी। पुजारी जी की दृष्टि पुराने लकड़ी के संदूक पर पड़ी, जो वर्षों से मंदिर के कोने में रखा था, जिसे किसी ने कभी खोला नहीं था। लेकिन आज, वह संदूक अपने आप थोड़ा सा खुल गया था...

संदूक का रहस्य (Sandook Ka Rahasya)

संदूक का रहस्य (Sandook Ka Rahasya)


गाँव के सबसे पुराने और प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में हर मंगलवार को बड़ी भीड़ लगती थी। यह मंदिर बहुत प्राचीन था और कहा जाता था कि यहाँ चमत्कारी घटनाएँ होती रहती हैं। लेकिन इस मंदिर में एक चीज़ थी जो हमेशा सबके लिए रहस्य बनी हुई थी—एक पुराना लकड़ी का संदूक। यह संदूक मंदिर के गर्भगृह के कोने में वर्षों से पड़ा था, पर किसी ने इसे खोलने की हिम्मत नहीं की थी।

रहस्यमयी संदूक

पुजारी जी के दादा जी कहा करते थे कि यह संदूक हनुमान जी की विशेष कृपा से जुड़ा हुआ है। यह वर्षों से बंद पड़ा था, लेकिन कोई नहीं जानता था कि इसमें क्या है। लोगों का मानना था कि जो भी इसे खोलने की कोशिश करेगा, उसके साथ कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर होगी।

एक दिन राघव, जो मंदिर का सबसे बड़ा भक्त था, वह इस रहस्य को जानने की जिद करने लगा। उसे मंदिर से गहरा लगाव था, और वह हमेशा सोचता था कि अगर यह संदूक हनुमान जी से जुड़ा है, तो इसे खोलना कोई पाप नहीं होना चाहिए।

राघव की जिद

राघव ने पुजारी जी से कहा, "गुरुजी, मैं इस संदूक को खोलना चाहता हूँ। अगर यह हनुमान जी से जुड़ा है, तो हमें इसे देखने से डरना नहीं चाहिए।"

पुजारी जी ने गहरी सांस ली और बोले, "बेटा, यह सिर्फ एक संदूक नहीं है, यह श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। वर्षों से इसे किसी ने नहीं छुआ, इसमें कुछ अद्भुत शक्ति हो सकती है।"

लेकिन राघव नहीं माना। उसने संकल्प किया कि वह अगले मंगलवार को हनुमान जी की विशेष पूजा के बाद संदूक खोलेगा।

अचानक हुआ चमत्कार

अगले मंगलवार को मंदिर में बड़ी भीड़ थी। राघव ने पहले विधिपूर्वक हनुमान चालीसा का पाठ किया और फिर पुजारी जी से अनुमति लेकर संदूक के पास पहुंचा। जैसे ही उसने संदूक के ढक्कन को छूआ, मंदिर में घंटियाँ तेज़ी से बजने लगीं, हवा की गति बढ़ गई और दीपक की लौ काँपने लगी।

राघव ने धीरे-धीरे संदूक खोला...

अंदर एक प्राचीन मूर्ति रखी थी—भगवान हनुमान जी की एक छोटी मूर्ति, जो चमक रही थी। मूर्ति के पास एक पत्र रखा था, जिसमें लिखा था:

"जो भी सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, उसके लिए यह संदूक हमेशा खुलेगा, और जो स्वार्थ के लिए इसे खोलेगा, वह इसका रहस्य कभी नहीं जान पाएगा।"

राघव की आँखों में आँसू थे। वह समझ गया कि यह कोई साधारण संदूक नहीं था, बल्कि हनुमान जी की कृपा का प्रतीक था। उसने श्रद्धा से मूर्ति को उठाया और पुजारी जी के चरणों में रख दी।

हनुमान जी के दर्शन

जैसे ही मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया, मंदिर में एक अद्भुत प्रकाश फैल गया। ऐसा लगा मानो स्वयं हनुमान जी वहां उपस्थित हो गए हों। वहाँ खड़े सभी भक्तों ने अपने जीवन में पहली बार ऐसी दिव्य अनुभूति महसूस की।

राघव ने उसी क्षण यह प्रतिज्ञा ली कि वह अपना पूरा जीवन हनुमान जी की सेवा में लगाएगा।

कहानी का सारांश

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची भक्ति में शक्ति होती है। हनुमान जी अपने भक्तों की हर पुकार सुनते हैं, लेकिन भक्ति में स्वार्थ नहीं होना चाहिए।

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